चला करते हैं कारोबार सारे।

भले छुट जायें अहले यार सारे।।


हमें तन्हाईयां भाने लगी हैं

उधर महफ़िल में हैं बीमार सारे।।


ज़माने भर के सरमाये जुटा लो

अगर ले जा सको उस पार सारे।।


अगर सब काम वाले जा रहे हैं

तो क्या रह जाएंगे बेकार सारे।।


मुसलसल धूप साया हो रही है

कहाँ हैं पेड़ वे छतनार सारे।।


अपीलें सच की खारिज़ हो चुकी हैं

भरे हैं झूठ से अख़बार सारे।।


ख़ुदा जन्नत में तन्हा क्या करेगा

अगर करने लगेंगे प्यार सारे।।


तुम्हें क्या खाक़ पूछेगा ज़माना

कि बन जायें अगर सरकार सारे।।


उरुज़े दोस्ती क्या आज़माएँ

अभी दुश्मन नहीं तैयार सारे।।


पनह मांगेगी जुल्मत भी यक़ीनन

करेंगे एक दिन यलगार सारे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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