कब मैं सम्हला जो लड़खड़ाऊंगा।
होश कब था कि बहक जाऊंगा।।
किसने बोला मैं रूठ जाऊंगा।
जब मिलोगे मैं मुस्कुराउंगा।।
अपनी चाहत पे यदि भरोसा है
मैं कहीं जाऊँ लौट आऊँगा।।
तुमको शक है तो रूठकर देखो
तुमको हर हाल में मनाऊंगा।।
शर्त होती नहीं मुहब्बत में
फिर भी शर्ते-वफ़ा निभाउंगा।।
प्यास किसकी बुझी है सागर से
किसलिए मयक़दे में जाऊंगा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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