कुछ बड़े कवि होते हैं।कुछ बड़े कवि बनते हैं।कुछ बड़े फेसबुक -व्यक्तित्व भी हैं जो किसी भी लाइक या कमेन्ट से परहेज रखते हैं।मैं भी बड़े होने के मुगालते में था।लेकिन मेरा भरम उसी दिन टूट गया जिस दिन मेरे साथ कुछ भले कनपुरियों ने कट्टा लगाकर मेरी जमापूंजी पर हाथ साफ़ किया था। उस समय मैं अगल बगल भी देख रहा था कि मेरे परिचित एक दो लोग तो सड़क पर नजर आएं।लेकिन कउनो नाही दिखा।मैं उन पुलिस वालों को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने मेरे मुगालते को तवज्जो दी ।उनका कहना था कि लुटेरे आपसे परिचित रहे होंगे।मैंने कहा हो सकता है #कट्टाकानपुरी के साथ एकाध बार देख लिया हो।दरोगा जी ने कहा ,'तुम्हारे चेहरे से तो नहीं लगता लूट हुयी है।"मैंने उनसे कहा कि सर!ऑटोग्राफ नहीं ले पाये ,यह भूल हो गयी।आगे से ध्यान रखेंगे सर।

हद तो तब हो गयी जब एसपी साहब आये।उस समय तक मेरे इर्द गिर्द काफी जानने वाले मित्र भी आ गए थे।एसपी साहब के सामने ही एक कवि मित्र बोले ,यार!हम लोगों के साथ लूट हो गयी? तुरंत एक अधिकारी ने पूछा,क्या मतलब?दूसरा बोला ,साहब!ये भी गिरोह वाले लगते हैं।'खैर तब से काफी पॉपुलर हो गया हूँ।एक पार्षद की शिकायत थी कि इतना तो वो पार्षद बन के नहीं परसिद्ध हुए।मैं राजेंद्र अवस्थी जी का आभार मानूँगा कि उन्होंने मना किया कि कवि मत बताना नहीं तो लोग लूट का विश्वास भी नहीं करेंगे।सब कहेंगे कि जन्म के दरिद्रों के पास माल मिले!असंभव!!! 

 खैर लूट का किस्सा तो बतंगड़ी में आ गया।लेकिन फेसबुक पर बड़ा कवि या साहित्यकार कौन है या हो सकता है इसमें बड़ा संशय है।हमें लगता है कि खुद मैथिलीशरण या दिनकर जी भी उतरि आवैं तो उन्हें इत्ते तो छोडो उत्ते लाइक भी ना मिलैं।हमारी एक महिला कवि साथी हैं।उन्होंने एक दिन एक कविता पोस्ट करी।प्रस्तुत है--

                    अरी!

                    मैं हीरे सी जल मरी।

अब इत्ती सी कविता पे सवा अढ़ाई सौ कमेन्ट गिर पड़े।खाली कमेन्ट  में किये गए विश्लेषण इकठ्ठा  लिख दिए जाएँ तो रामविलास शर्मा का शोध प्रबंध पूरा हो जाये। लाइक तो अपरंपार।मत पूछौ।मैंने उन महोदया से पूछा कि हीरा काहे लिखा?उन्होंने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ,मैं काली तो हूँ नहीं। 

  अब मैं भी बड़ा कवि होने के गुण ढंग सीख रहा हूँ।पहला ही आ जाय तो बहुत कि दूसरे के अच्छे पोस्ट पर भी कमेन्ट मत करो।आखिर बड़ा जो बनना है।

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