दिल इतना बेताब नहीं था।
यूँ भी उधर नक़ाब नहीं था।।
ज़ख्म दिए मेरे अपनों ने
खंज़र में वो ताब नहीं था।।
टूटा पलक झपकते कैसे
दिल था तेरा ख़्वाब नहीं था।।
ख़ैर करो दो बूंदे बरसीं
अश्कों का सैलाब नहीं था।।
दिल ने कई सवाल उठाए
जां के पास जवाब नहीं था।।
नाहक नज़र हटाई तुमने
इतना बड़ा हिसाब नहीं था।।
इश्क़ फकीरों का था माना
हुस्न कोई नव्वाब नही था।।
क्यों सुरेश बस्ती में आया
अपना गाँव ख़राब नहीं था।।
**सुरेश साहनी कानपुर **
Comments
Post a Comment