जाने कितनी नजरों के पर्दे में रहकर ।

नारी कब रह पाती है पर्दे के भीतर।।

चाहे जितने कपड़ों के वह कवच चढ़ा ले

चुभते रहते हैं वहशी नज़रों के नश्तर।।

किन किन रिश्तों में नारी महफूज रही है

कहने को तो पर नारी है बहन बराबर।।

रिश्ते के भाई,चाचा बाबा या जीजा

कोई पडोसी फूफा मामा जेठ औ  देवर।।

सब के सब ही अपनी जात दिखा देते हैं

एक जानवर छुपा हुआ है सबके भीतर।।


सुरेश सहनी

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