जाम चलने का इन्तेज़ार न हो।
शाम ढलने का इन्तेज़ार न हो।।
प्यार करने का है मुहूरत क्या
दिल मचलने का इन्तेज़ार न हो।।
चाहतें जबकि हैं सुलग उट्ठी
जिस्म जलने का इन्तेज़ार न हो।।
जिस्मो- जां सब से लूट लो मुझको
दम निकलने का इन्तेज़ार न हो।।
दिल न चाहे तो छोड़ दो उसको
मन बदलने का इन्तेज़ार न हो।।
साहनी जी फ़रेब को समझो
हाथ मलने का इन्तेज़ार न हो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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