करिया अक्षर भइस बराबर।

अच्छा है हम रहे निरक्षर।।

सोचा था इंसान बनेंगे

पढ़ लिख कर हो गए जानवर।।

अहंकार में ऐसे डूबे

डूब मरे लाजन दसकंधर।।

बने लुटेरे सब जनता के

बाबू टीचर लीडर अफसर।।

पढ़े लिखे का हाल न पूछे

आज कबाड़ी उनसे बेहतर।।

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