कोई ज़िद आसमानों तक न पहुंचे।

मुहब्बत इम्तेहानों तक न पहुंचे।।


करो तकरार लेकिन हद में रहकर

अदावत खानदानों तक न पहुंचे।।


अदब का सिलसिला तहजीब से है

ये गिर के पायदानो तक न पहुंचे।।


तो बेमतलब की समझो नज़्मगोई

अगर ये हमजुबानों तक न पहुंचे।।


हमारे हुक्मरां बहरे रहेंगे

जो हम सब  उनके कानों तक न पहुंचे।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है