मेरा दुख कम करते करते
घाव हृदय के भरते भरते
मुझसे प्रेम न करने लगना।
पीड़ाएँ होती हैं छलना।।
बचपन से लेकर यौवन तक
यौवन से लेकर इस क्षण तक
मन की आकुलता से लेकर
व्याकुल तन के आकर्षण तक
कुछ पा लेने की कोशिश में
कुछ अपना मत खोने लगना।। मुझसे....
मेरे हंसने में दुनिया को
केवल मेरा सुख दिखता है
मैं भी ढक लेता हूँ वह सब
जिसमे मेरा दुख दिखता है
मेरे आँसू क्या रुकने हैं
तुम मत नयन भिगोने लगना।।मुझसे ..
पीड़ाओं ने अपनाया है
प्रेम कहाँ मैने पाया है
तुम कुछ समझो लेकिन मैंने
केवल पीड़ा को गाया है।।
मैं गाता हूँ भूल सकूँ दुख
तुम पीड़ा मत गाने लगना।।मुझसे.....
सुरेश साहनी
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