हर भोले बचपन को सपनो की दुनिया से
बाहर लाना होगा अपनों की दुनिया से
अम्मा से बाबू से दादा से दादी से
छुटकारा दिलवा कर झूठी आज़ादी से
नाना और नानी से मामी और मामा से
दावा से वादा से माझा से झामा से
सूरज से चाचा से या चंदामामा से
आधी हर नेकर से ऊँचा पाजामा से
इन सब से बचना है यदि आगे बढ़ना है
ग़ैरों से बचना है अपनों से लड़ना है
मरना कब आसां है मुश्किल कब जीना है
विष घट भी अमृत सम घूँट घूँट पीना है
ये भी समझाना जो हल और कुदाली है
तसला हथौड़ी या गैंती भुजाली है
तेरे पसीने के ये सब ही साथी हैं
पानी का लोटा है रोटी की थाली है
उठ तुझको दुनिया के साँचे में ढलना है
दुनिया नहीं अपना तेवर बदलना है
चल बेटा उठ जल्दी रोजी पर चलना है
रधिया की दुनिया को बाहर निकलना है.............
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment