जो भी मुहब्बत सीख गया है।

कुछ तो शराफत सीख गया है।।

वैसे भी वो सादिक़ दिल था

और सदाक़त   सीख गया है।।

ईमां से  भटका है  शायद

बुत की इबादत सीख गया है।।

हम भी यक़ी से पुख़्ता हो लें

यार अक़ीदत सीख गया है।।

ख़्वाब पशेमां हो जाते हैं

क्या क्या हरकत सीख गया है।।

हाँ इतना है इश्क़ में सब की

करना इज़्ज़त सीख गया है।।

दर्द भी देगा हौले हौले

इतनी मुरौवत सीख गया है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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