उसमें पहले जैसी आदत अब नहीं है।
मेरे दिल में उतनी इज़्ज़त अब नही है।।
मुंह चुराकर बादलों में जा छिपा है
रौशनी थी उसकी फितरत अब नहीं है।।
पास है दो गज़ ज़मीं भी आज जब
साहनी भी बे-दरों-छत अब नही है।।
तुमको आना है तो आओ ठीक है
पर वो पहले सी मुहब्बत अब नही है।।
जिस वज़ह से तुम कभी बेरुख़ हुए
जा चुकी है अपनी ग़ुरबत अब नही है।।
सुरेश
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