मेरी एक पुरानी रचना पर आपका आशीर्वाद चाहूंगा।
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मेरे मित्र बहुत ज्यादा है
पर वो सचमुच मित्र नहीं हैं।
सब कुछ है पर अर्थहीन है
छायायें हैं चित्र नहीं हैं
आभासी दुनिया भी कैसी
मृग मरीचिका है माया है
कैसे करें आंकलन हमने
क्या खोया है क्या पाया है
एकाकीपन भरी भीड़ में
तनहाई में अगणित साथी
और अंत में प्रतिफल भी क्या
वही भोर की दिया बाती
कितने जोड़े कितने छोड़े
अगणित जुड़े अनगिनत टूटे
परछाई के पीछे भागे
प्रतिफल कितने अपने छूटे
आभासी दुनिया है सचमुच
या दुनिया ही आभासी है
अष्टावक्री समाधान का
यह विदेह भी अभिलाषी है
आभासी दुनिया में हमने
जब भी खोजी प्रासंगिकता
खुद ही लिख ली खुद ही पढ़ ली
अपनी लिखी कहानी कविता
Suresh Sahani
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