क़ौम के क़ातिल बहुत हैं।

हक़ कहें बातिल बहुत हैं।।

आप ने इल्ज़ाम थोपे

और हम बिस्मिल बहुत हैं।।

एक दो  हों  तो बतायें

और भी ज़ाहिल बहुत हैं।।

आप के ग़म में मरे क्यों

और भी हासिल बहुत हैं।।

कोई मरहम हो तो देना

यां भी उजड़े दिल बहुत हैं।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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