गंजी खोंपड़ियों से लंबे केशों से।

कुटिल हृदय से उकसाये आवेशों से।।

खुदा और भगवान बेचते लोगोंसे

मन का मलिन ढाकने वाले वेशों से।।

भाई चारा अमन चैन का युग बीता

आज जूझता समय कलह से क्लेशों से।।

देश भरा है रियासतों इस्टेटों के

फर्जी सुल्तानों से छद्म नरेशों से।।

अब संसद में सहमति वाली बात गयी

शायद मुल्क चलेगा अध्यादेशों से।।

हे प्रभु भूले से भी ऐसा मत करना

देश हमारा ले निर्देश   विदेशों से।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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