साथ रखना सदाओं में न रखना।
हमें बेशक़ दुआओं में न रखना।।
मै खुश हूँ तेरे ग़म के साथ मुझको
ख़यालों के ख़लाओं में न रखना।
अदाएं तुम से बेहतर तो नहीं हैं
कभी खुद को अदाओं में न रखना।।
मुहब्बत तो तेरे बुत से है फिर भी
सनम ख़ुद को ख़ुदाओं में न रखना।।
मुहब्बत में खुदी का काम क्या है
मुहब्बत को अनाओं में न रखना।।
चुरा ले आँख से काजल न कोई
बदन अपना घटाओं में न रखना।।
तुम्हें हर्फे वफ़ा से क्या गरज है
मुझे अपनी वफाओं में न रखना।।
मुझे जलने की आदत पड़ गयी है
मुझे चाहत की छांवों में न रखना।।
तुम्हारे दिल के मंदिर में नहीं हूँ
सम्हलना फिर भी पांवों में न रखना।
जफ़ा की है तो फिर तस्लीम कर लो
मुहब्बत को भुलावों में न रखना।।
करोना से बड़े ख़तरे हैं इनसे
सियासी दाँव गाँवों में न रखना।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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