आज उसने कहा गुलाब मुझे।

जो समझता रहा ख़राब मुझे।।

मेरा उससे कोई सवाल न था

उसने भेजा मगर जवाब मुझे।।

दिल से चश्में उबालता लेकिन

उसने समझा फ़क़त सराब मुझे।।

उसको जुगनू पसंद थे शायद

यार कहते थे आफ़ताब मुझे।।

वो सरापा शराब थी गोया

पी गयी फिर वही शराब मुझे।।

किस तरह कह दें बेनयाज़ उसे

जो दिखाता रहा है ख़्वाब मुझे।।

जाने किसका लिहाज है उसको

चाहता है जो बेहिसाब मुझे।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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