अपने अपने हिस्से की खुशियाँ तलाशते हैं।

एक दूसरे का दुःख हम अब कहाँ बांटते हैं।।


मौका पड़ते ही हिन्दू -मुस्लिम हो जाते हैं

दीन-धरम का मूल मन्त्र हम कहाँ जानते हैं।।


विश्व बंधुता ,राष्ट्रप्रेम का ढोंग रचाये लोग

सत्कार बाद में सबसे पहले जाति पूछते हैं।।

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