मुल्क़ की हालत बतायें और क्या।
चल रहीं उल्टी हवायें और क्या।।
पांचवे खम्बे का ये ईमान है
जिससे पायें उसकी गायें और क्या।।
तप रहे हैं जब कहीं एहसास तक
किसलिए रिश्ते निभाएं और क्या।।
आदमी की आदमी के वास्ते
मर चुकी संवेदनायें और क्या ।।
आज इस दौलत की अंधी दौड़ में
कौन समझे भावनाएं और क्या।।
हम रहेंगे तब बचाएंगे तुम्हें
क्या करें ख़ुद को बचाएं और क्या।।
एक दौलत ही चली ताज़िन्दगी
माँ ने दी थी जो दुआएं और क्या।।
दो ज़हां में माँ के जैसा कौन है
ले ले अपने सर बलाएँ और क्या।।
लोग जलते हैं जलें हम क्या कहें
क्या करें ख़ुद को जलायें और क्या।।
साहनी लिखता तो है अच्छी ग़ज़ल
हम किसी से क्यों बतायें और क्या।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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