इस ग़ज़ल पर आपकी तवज्जह चाहूंगा।
हम नहीं अब सिर्फ़ मैं-तुम देखिये।
तल्खियों में गुम तबस्सुम देखिये।।
क्या ज़रूरी है ज़ुबाँ से बोलना
कितने दहशत में हैं कुलसुम देखिये।।
नाख़ुदा की बदगुमानी पर फिदा
हैं तो चलिए क्या तलातुम देखिये।।
हमने माना वो बड़ा मासूम है
कुछ तो अंदाज़े- तकल्लुम देखिये।।
गुफ़्तगू के दौर तो जाते रहे
अब नज़रियों पर तसादुम देखिये।।
जब तलक तहजीब थी जन्नत थे घर
बढ़ रहे हैं अब जहन्नुम देखिये।।
बेसुरे से राब्तों के दौर में
साहनी जी का तरन्नुम देखिये।।
कुलसुम/ आंखें
नाख़ुदा/ नाविक
तलातुम/ ज्वार- भाटा, ऊँची लहरें
तकल्लुम/ बातचीत
गुफ़्तगू/वार्तालाप,बातचीत
तसादुम/ टकराव
नज़रिया/विचार
जहन्नुम/नर्क
राब्ता/ सम्पर्क, रिश्ता
तरन्नुम/ लय
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