फिर एकलव्य का अंगूठा दक्षिणा दान  जायेगा।

फिर से अभिमन्यु चक्रव्यूह में ही मारा जाएगा।।

फिर भक्ति भाव वश बर्बरीक अपना सिर कटवाएगा।

फिर शिवपुत्रों का  स्वाभिमान मठ में रौंदा जाएगा।।


जब संजय अपनी आंखें मठ में गिरवी रख आएगा।

जब पुत्रमोह में ऐसा नायक अंधा हो जाएगा।

जब गंगा जमुना की संतानें यूँ घुटने टेकेंगी

तब संततियां सदियों तक क्या दासत्व नहीं भोगेंगी।।

हे सत्यवती की संतानों तुमने जो कार्य किया है।

तुमने निजहित ही नहीं समाज हित को भी बेच दिया है।।

सुरेश साहनी, कानपुर।।

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