नया दौर हैं तौर भी अब नए हैं।

तमद्दुन ओ तहज़ीब बदले हुए हैं।।

मुहब्बत है गुज़रे ज़माने के सिक्के

अज़ायबघरों में जो रक्खे गये हैं।।साहनी

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