कभी किसान सिर्फ किसान थे

आज अमीर और गरीब

दो तरह के किसान हैं

उनमें भी कुछ हिन्दू 

कुछ सिख,कुछ ईसाई 

और कुछ मुसलमान हैं

उनमें भी कुछ कांग्रेसी

कुछ वामपंथी या समाजवादी

और कुछ भाजपाई हैं

और बहुत सारे ऐसे भी हैं

जो एक साथ कई रंग 

और कई ढंग के झंडे

या बैनर रखते हैं

और वैसे ही रंग जाते हैं

जैसा समय देखते हैं

वे जानते हैं

यह नेता तो क्या

इसका बाप भी किसान नहीं था

और तो और इसके पास 

किसी भी गांव में 

खेत या मकान नहीं था

फिर भी ये उसको

जाति, या मजहब या पार्टी के नाम

वोट दे आते हैं

और सोचते हैं इस बार 

भले बगल के खेत में  सूखा पड़े

उनके खेत में हरियाली होगी

रघुआ अकाल से मरेगा

शास्त्री जी के घर खुशहाली होगी।।

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