हम ग़ैरों से कब हारे हैं।

अपनों से ही सब हारे हैं।।

भक्तों को क्या समझाओगे

भक्तों से मकतब हारे हैं।।

अज़मत देखो दरवेशो से

ओहदे औ मनसब हारे हैं।।

प्यार में कितनी ताक़त है कि

बन्दों से साहब हारे हैं।।

जीत इसी में है हम सब की

हारे तो हम सब हारे हैं।।

हमने दिल से ठान लिया जब

तब उनके करतब हारे हैं।।

इश्क़ में जीता है कब कोई

रब हारे यारब हारे हैं।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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