उसने मेरा नाम लिया है
कुछ के दिल मे आग लगी है।
महफ़िल इतनी रौशन क्यों है
क्या महफ़िल में आग लगी है।।
मैं अक्सर सोचा करता हूँ
आखिर मुझमें ऐसा क्या है
दो दस कविता लिख लेने से
क्या व्यक्तित्व बदल जाता है
क्या मैंने ऐसा पाया है
जिस हासिल में आग लगी है।।
ठहरे पानी में इक पत्थर
किसने आज उछाल दिया है
स्नेह कुंड के अग्निगर्भ में
आशाहुति स्वह डाल दिया है
क्या उसको भी मालूम है यह
किस मंज़िल में आग लगी है।।....
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