जवानी रेत का कोई महल है।

तुम्हारा हुस्न भी दो चार पल है।।


तुम्हारा हुस्न है कोई कयामत

हमारा इश्क जन्नत का बदल है।।


न जाने किसलिए इतरा रही हो

जरा सा चीज है कितना खलल है


जिसे बुढ़िया समझ कर डर रही हो

तुम्हारे हुश्न का रद्दो बदल है।।


न जाने कितने दिल तोड़े हैं तुमने

ये मत समझो कोई अच्छा शगल है।।


यहाँ उससे भी ज़्यादा उलझने हैं

तुम्हारी जुल्फ में जितनाभी बल है।।


तमन्नाएँ हमारी जितनी कम हैं

समझिए ज़िन्दगी उतनी सहल है।।


मुकम्मल हो न पायी ज़िन्दगी भी

गोया इक अधूरी सी गजल है।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

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