ज़िंदगी प्यार से अकमल कर दे।
इस क़दर चाह कि पागल कर दे।।
हश्र के रोज ये हसरत क्यों हो
आज की रात मुकम्मल कर दे।।
मरमरी जिस्म है संदल तेरा
मेरी हर सांस को संदल कर दे।।
अपनी आंखों में बसाना है तो
तू मेरे जिस्म को काजल कर दे।।
अपनी जुल्फों की घनी छांव में रख
और हर दीद से ओझल कर दे।।
सुरेश साहनी कानपुर
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