प्यार मुहब्बत कसमे वादे झूठे उस हरजाई से।
डर लगता है अब तो मुझको खुद अपनी परछाई से।।
रोते रोते चुप हो जाना चुप हो कर फिर से रोना
इस रोने धोने में क्या क्या छूट गया तरुणाई से।।
पूछो मत क्या खोया मैंने मत पूछो क्या पाया है
एकाकीपन की महफ़िल या मेलों की तन्हाई से।।
माना मैं दिलदार नहीं था तुम भी यार फरेबी थे
मेरे पास झिझक थी तुम भी डरते थे रुसवाई से।।
सुरेश साहनी
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