सृष्टि चक्र है अभी अधर में 

कल्कि अवतरण अभी दूर है 

जिससे होगा युग परिवर्तन 

वह अंतिम रण  अभी दूर है 


सृष्टि चक्र के उस सुमेरु से 

कोई हनुमत ही लांघेगा 

अश्वमेघ  के अग्रदूत को 

कोई साधक ही बांधेगा 


कब सुमेरु  को  लांघ सका हैं  

कोई राजा या अतिवादी 

जन्म मृत्यु के इस रौरव से 

भोगी कब पाता आज़ादी.


लालच सिंधु पार कर लंका

जा सकता यदि साधारण नर

क्यों प्रभु राम साथ ले जाते 

कोल किरात रीछ अरु वननर 


सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है