आज की ग़ज़ल समाअत फरमायें
:-
कहने को अनपढ़ ख़ादिम सरकारी था।
पर ख़िदमत में आलिम फ़ाज़िल कारी था।।
वक़्त ज़रूरत काम सभी के आता था
कुछ की नज़रों में वो कम व्यवहारी था।।
आंखों का तारा था कई गरीबों का जो
चंद अमीरों के दिल पर वो आरी था।।
हंसता था हौले हौले तन्हा तन्हा
आज मुहल्ले पर जिसका ग़म तारी था।।
कुछ ने चाहा उसे फांसना मुर्गे सा
कई घरों की जो रोटी तरकारी था।।
वो सीधा था हद से ज्यादा दुबला भी
और जनाजा उसका कितना भारी था।
सुरेश साहनी, कानपुर
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