एक दिन भूल गया घर मेरा।
वो जो पढ़ता था मुक़द्दर मेरा।।
जो था रहजन मेरी उम्मीदों का
प्यार से हो गया रहबर मेरा।।
वो हरम रोज़ बदल लेता है
मुझको मिलता ही नहीं दर मेरा।।
होठ उसके है पियाले गोया
उसकी आँखों में है सागर मेरा।।
उनकी नफ़रत से हुआ जाता है
और किरदार मुनव्वर मेरा।।
घर मेरा क़त्ल मेरा और मेरे-
दोस्त क़ातिल मेरे खंजर मेरा।।
बाद मेरे कहाँ सोया क़ातिल
उसकी आँखों में रहा डर मेरा।।
ऐ यज़ीद मुड़ के किधर जाता है
देख वो आता है असगर मेरा।।
गीर सुन ज़न्न से तनहा है तू
और ईमान है लश्कर मेरा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
मुक़द्दर/ भाग्य
रहजन / लुटेरा
रहबर / पथ प्रदर्शक
क़िरदार / चरित्र
मुनव्वर / प्रकाशित
असगर/ हुसैन के नाती , बहुत तेज गति वाला
गीर / विजेता
ज़न्न / संदेह करने वाला, काफिर
ईमान / विश्वास ,चरित्र
लश्कर / सेना की टुकड़ी
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