सुनो अच्छा बुरा कुछ तो कहो।
तुम्हे मेरी कसम चुप ना रहो।।
मेरा दम घोंटती है ये ख़ामोशी
बहो वादे-सुखन बन कर बहो।।
तुम्हे हक़ है हमारी जान ले लो
कि मैं दे दूँ मगर खुल कर कहो।।
तुम्हारे ग़म का साझीदार हूँ मैं
तुम्हे क्या हक है सब तनहा सहो।।
भरी महफ़िल में तन्हा मत रहो तुम
मगर दिल में मेरे तनहा रहो।।
सुरेश साहनी, कानपूर
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