किससे दिल की बात कहें हम।

बेहतर है  ख़ामोश  रहें हम।।


बाद मुहब्बत ही सोचेंगे

उनके नफ़रत की वज़हें हम।।


बेगानी  दुनिया  के  जैसे

धारा में दिन रात बहें हम।।


खुशियों में हल्ले गुल्ले हों

ग़म हो तो चुपचाप सहें हम।।


तपते  एहसासों की हद है

आख़िर कितना और दहें हम।।


साथ अगर छोड़ा है तुमने

क्यों कर दामन और गहें हम।।


गाँठ मुहब्बत में लाज़िम है

क्यों खोलें उनकी गिरहें हम।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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