उम्र भर छलती रही ऐसे मेरी तकदीर।
एक थाली भूख पर दी एक चम्मच खीर।।
घर वही टूटी हवेली का कोई कोना
मर्जियाँ कुछ बंदिशों का उम्र भर ढोना
बोझ घर का क्या उठाती थक चुकी शहतीर।।
और जिम्मेदारियों में थक चुके परिजन
झुर्रियों की कोटरों में आस के दर्शन
मुझको राजा कह के सौंपी दर्द की जागीर।।
नित खुशी का वेदना की सेज पर सोना
नित्य आशा का दिलासा अब नहीं रोना
एक नदिया प्यास पर ज्यूँ एक अँजुरी नीर।।
द्वार पर दरबार लगना घर हुआ रनिवास
बालपन में हसरतों को जब मिला बनवास
हाँ यही मुझको मिला है कह उठे रघुवीर।।
यातना दावानलों की और चंदन गात
इक सुबह की आस ने दी उम्र भर की रात
कब किसी केशव ने समझी अश्वसेनी पीर।।
इक कदम पर शह मिली दूजे कदम पर मात
मौत भी करती रही है घात पर प्रतिघात
दो गुना बढ़ कर मिली है कम हुई जब पीर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment