मुझसे लोग कहते हैं, कोरोना पर कुछ लिखिए

 मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि क्या यह कोई इवेंट है कि इसे उत्सव की तरह स्वीकार कर लें। मैं कोई विशेषज्ञ भी नहीं कि इस सम्बंध में विज्ञान अथवा तर्कसम्मत जानकारी दे सकूँ।ऐसा सेलेब्रिटी भी नहीं हूँ कि मेरे ढेर सारे फॉलोवर्स हों और मेरे लिखे का उन पर असर हो जाएं। मुझे पता है जब मैं टीवी देखने या मोबाइल इस्तेमाल करने के खतरों के बारे में बताता हूँ तो ऐसी बातें घर के सदस्यों तक के गले से नीचे नहीं उतरती।फिर बाहर के लोग मेरी कोई बात क्या खाक मानेंगे।और आजकल तो लॉकडाउन के चलते टीवी और मोबाइल ही सहारा हैं। जिससे घर मे बच्चे अवसाद में आने से बच रहे हैं।फोन से यत्र तत्र बातें करके महिलाएं अपना भोजन पचा पा रहीं हैं।

एक मेरे सज्जन मित्र हैं। उन्होंने मानवीय मूल्यों और आदर्श गृहस्थ होने का हवाला देते हुए घर के काम मे हाथ बटाना चालू किया। पत्नी ने देखा कि अंगुली पकड़ में आ ही गयी है सो पहुँचा पकड़ने में क्या दिक्कत है । बकौल हमारे कवि मित्र Suraj Rai Suraj उन्हें आये दिन ताना भी मिलना चालू हो गया कि "बड़ा दिन भर पहाड़ तोड़ते थे।अब समझ मे आया कि हम घर मे कितना खटती हैं।एक काम ठीक से नहीं होता।,

एक दिन सुनने में आया कि यार!अब समझ मे आ रहा है कि  ऐसी पत्नी के साथ घर मे सारा दिन बिताने से पहाड़ तोड़ना कहीं बेहतर काम है। हमे ध्यान आया किसी हास्य कवि ने सुनाया था कि तीन तीन सास की टहल करने से तो जंगल ही बेहतर है। 

मुझे भी लगा कि महापुरुष यूँ ही नहीं बनते।हर पुरुष की सफलता के पीछे किसी स्त्री का हाथ है।बिना स्त्री के परेशान किये कोई चाय वाला  कितनी तरक्की कर सकता है। इसी कमी के चलते हमारे कमलेश भैया महाकवि नहीं बन पाए। खैर पहाड़ खोदने से याद आया अपने देश के एक सच्चे रत्न,  महानायक माउंटेन मैन दशरथ मांझी का नाम।उन्होंने अपनी पत्नी के नाम से एक छेनी और हथौड़ी लेकर 22 साल की मेहनत के बाद एक बड़े से पहाड़ को काट कर मार्ग में बदल दिया। मैं सोच रहा था कि जब दशरथ मांझी जिंदगी भर का लॉकडाउन झेल कर इतना बड़ा काम कर दिया कि आज दुनिया उनके नाम को नमन करती है। आज कोरोना नाम का पहाड़ हमारे सामने महामारी बन के आ खड़ा हुआ है। क्या हम लोग देश के लिए ये छोटे छोटे लॉकडाउन नहीं झेल सकते। बस हमें सोशल डिस्टनसिंग और फिजिकल  डिस्टेंसिंग को सोच समझकर एक्सेप्ट करना होगा , पालन करना होगा। इसके साथ ही सरकार से एक निवेदन है कि जब कोरोना नियंत्रण से बाहर होगा तो देश की आधी से अधिक जनता उसकी चपेट में आ सकती है तब उसकी जद में ये तथाकथित बड़े लोग नहीं होंगे ,क्या ऐसा हो सकता है। अतः देश की गरीब जनता की उपेक्षा मत करें।उनका भोजन और स्वास्थ्य भी आपकी ज़िम्मेदारी है।

सुरेश साहनी, कानपुर

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