तीन ओर से समुद्र से घिरे हुए , सैकड़ों नदियों , हजारों झीलों , लाखों ताल -पोखरों और महा जलस्रोत हिमाच्छादित हिमालय वाले देश में उस पर आश्रित समुदाय से सब कुछ छीना जा चुका है।इसमें किसी व्यक्ति या राजनैतिक दल का हाथ नहीं है।यह इस समुदाय की वह कमी है ,जिसके चलते डायनासोर जैसी प्रजाति लुप्त हो गयी। यानि समय के साथ हुए बदलाव के साथ यह समुदाय स्वयं को नहीं बदल पाया।उत्तर वैदिक काल ,बुद्ध काल,बुद्ध के बाद का समय,मौर्य वंश,गुप्त वंश,पुष्यमित्र शुंग का जनसंहार , हूण, शक,यवन,अरब और मंगोलों का अतिक्रमण ,मुस्लिम आक्रमण,मुगल काल,अंग्रेजी उपनिवेश काल, नवजागरण काल और उसके पश्चात आज़ादी के सत्तर वर्ष।भारत निरन्तर बदला है।इस समुदाय को कभी जल से बेदखल किया गया ,कभी जमीन से हटाया गया।कभी जल,जमीन दोनों से बेदखल कर जंगलों में भेज दिया गया।तो कभी जंगलों में भी उनके रहन सहन और स्वतंत्रता पर बंदिशे लगायी गयीं।कभी छल से कभी बल से इस समुदाय को अधिकार विहीन कर दिया गया।चुपचाप शोषण स्वीकार करने पर दास बनाया गया और विरोध प्रकट करने पर कभी राक्षस तो कभी नक्सली बताकर मारा गया। इनकी युद्धक क्षमताओं का उपयोग राम से लेकर आधुनिक काल तक सबने अपने अपने तरीके से किया।यहां तक कि प्रगतिवादी कहे जाने वाले वामपंथियों ने भी केवल इनका उपयोग किया है।तथाकथित विकास के नाम पर जो इंफ्रास्ट्रक्चर या ढांचागत निर्माण हुए ,जैसे-सड़कें,पुल, यातायात के साधन,कारखाने इत्यादि।सबने इस समुदाय के रोजगार और जीविकोपार्जन के संसाधन ही खत्म किये। अब आज यह समुदाय राष्ट्रिय विकास की मुख्यधारा से हटकर बिलकुल हासिये पर आ गया है।अब यही लगता है कि कुछ दिन बाद यह समुदाय या तो अपनी पहचान पूरी तरह खो कर उसी तरह अवशेष मात्र रह जायेगा जैसे आज अमेरिका में रेडइंडियन हो चुके हैं।अथवा डायनासोर की तरह विलुप्त हो जायेगा।तब शेष भारत की पीढ़ी निएंडरथल मानव की तरह आस्ट्रिक प्रजातियों को भी केवल किताबों में देख पायेगी।
जरूरत है कि इस समाज अथवा समुदाय को विग्रह की राजनीति से बचाने की,विग्रह सिखाने वाले दल ,समूह और सामुदायिक नेताओं से बचाने की। क्योंकि घृणा ,टकराव,भेद,विद्रोह और हिंसा यह समस्त बातें विकास के मार्ग में बाधक हैं। यदि कोई रास्ता है तो वह प्रेम और समन्वय का रास्ता है जिस रास्ते पर चलकर आप अभीष्ट प्राप्त कर सकते हैं।
#समन्वयवाद के सूत्र
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