हमने सर्वजन कल्याण के विषयों को अनावश्यक गूढ़ बना दिया है। हो सकता है यह प्रयास बाह्य आक्रांताओं से ज्ञान गंगा को बचाना मात्र रहा हो।किन्तु इस दोष के चलते बहुत सारा ज्ञान लुप्त हो गया।दरअसल हम जिसे हठ योग कहते हैं,यही सहज योग है।धर्म की आड़ में   कुटिल और अधकचरे बाबाओं ने अपना महत्व और प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए इन विषयों को आम जन से दूर  एवं दुरूह कर दिया।अन्यथा भारतीयता और भारतीय जीवन दर्शन विश्व में सबसे सरल थे और हैं।

वस्तुतः बुद्ध के उपरांत वैचारिक क्रांति तीन भागों में विभक्त हो गई थी।महायान, हीनयान और सहजयान।यह सहजयान इस बात पर बल देता था कि दुखों के निवारण के लिए स्वस्थ मन के साथ स्वस्थ तन भी आवश्यक है।सहज यान साधना के चरम को प्राप्त करने के लिए मठों में रहने की बजाय प्रकृति की गोद में जंगलों ,पहाड़ों और कन्दराओं में विचरण करता था।यही पर स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने शरीर शोधन के सूत्र खोजे  जिन्हें षटकर्म कहा गया।बताते हैं स्वयं महायोगेश्वर शिव ने उन्हें यह ज्ञान प्रदान किया था।तब षट्कर्म और अष्टांग योग जिसे कालांतर में पतंजलि ऋषि ने प्रतिपादित किया स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए काष्ठमंडप और रामग्राम में मठ/स्कूल स्थापित किये।उनके द्वारा स्थापित प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को हठयोग के नाम से जाना गया,क्योंकि इसमें एक गृहस्थ को आलस्य और अनावश्यक भोगादि का त्याग करना पड़ता था।

#समन्वयवाद के सूत्र

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