मन करे सूत रहीं जाई के रजाई में।
कुल गरमी झर गईल लाइन लगाई में।।
रोटी दाल नईखे मिलत जउने नोटवा में
उहे नोट चलत बावे तेल के भराई में।।
बड़कन के कवन दुःख साल भर न नोट मिले
छोटकन के जान जाता नोट बदलवाई में।।
खेतिओ बवाल भईल, यूरिया अकाल भईल
खेतिहर पिछड़ गईलें रबी के बोवाई में।।
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