दगा वही दे दे अगर जिस पर था विश्वास।

ऐसे में मन बावरा किससे रक्खे आस।।


अपनों से ताना मिले गैरों से उपहास।

ऐसे में मन बावरा क्यों ना रहे उदास।।


तन दो दिन का पींजरा आती जाती सांस।

मन पंछी को है भरम यह ही है आकाश।।


इस दर से उस दर फिरे, फिरे गेह से गेह।

अंतर पीय बिसार के पर घट ढूंढ़े नेह।।


बेशक़ समझ उलाहना भले समझ फरियाद।

भूल गया है जब मुझे  मत आया कर याद।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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