मक्कारों  ने    बैठे - ठाले।

कितने मज़हब ढूंढ़ निकाले।।

कहते हैं सब एक बराबर

फिर क्यों ऊँचे आसन डाले।।

ऊँचे  नीचे   छोटे  मोटे

हर मज़हब में कितने माले।।

माया पति है जितने भी

सब माया है समझाने वाले।।

नर्क बना देते हैं दुनिया

ये जन्नत क्या जाने साले।।

इनकी बहकावों में आकर

लड़ मरते हैं बोले भाले।।

एक महाभारत अब फिर से

करवा दे ओ बन्शी वाले।।

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