ज़ुल्फ़ उनकी खुल के यूँ लहरा गयी।
शाम जैसे दोपहर ही आ गयी।।
नौजवानी उनकी आदमखोर है
जाने कितनी ज़िंदगानी खा गयी।।
कौन देखे लोग कितने मर मिटे
अब कमर बल खा गई तो खा गई।।
इक नज़र महफ़िल को देखा और फिर
हर तरफ जैसे खुमारी छा गयी।।
Suresh sahani
ज़ुल्फ़ उनकी खुल के यूँ लहरा गयी।
शाम जैसे दोपहर ही आ गयी।।
नौजवानी उनकी आदमखोर है
जाने कितनी ज़िंदगानी खा गयी।।
कौन देखे लोग कितने मर मिटे
अब कमर बल खा गई तो खा गई।।
इक नज़र महफ़िल को देखा और फिर
हर तरफ जैसे खुमारी छा गयी।।
Suresh sahani
Comments
Post a Comment