दर्द इतना हसीन क्यों लायें।
दिल में एक महज़बीन क्यों लायें।।
उन की ख़ातिर ग़ज़ल तो पढ़ देंगे
पर हमी सामयीन क्यों लायें।।
दिल कहीं और क्यों लगायें हम
ज़ख़्म ताज़ातरीन क्यों लायें ।।
वो वहाँ आसमां पे बेहतर हैं
उनको ज़ेरे-ज़मीन क्यों लायें।।
क्या ख़ुदा को यक़ीन है हम पर
हम भी उस पर यक़ीन क्यों लायें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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