कैसे कहें तेरे बगैर ज़िदगी भी है।

महफ़िल है,तेरी याद है तेरी कमी भी है।।

सागर है जामनोश है साक़ी है ज़ाम भी

यूँ  तिश्नगी नहीं है मगर तिश्नगी भी है।।

मैंने तेरी ख़ुशी में ही खुशियाँ तलाश की

आखिर तेरी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी भी है।।

इतनी हसीन चांदनी वो भी तेरे बगैर

ये तीरगी नहीं है मग़र तीरगी भी है।।

गर तू नहीं तो मेरी कलम का है क्या वुजूद

तू है तो मेरी नज़्म मेरी शायरी भी है।।

मैं हूँ नहीं हूँ जो भी हो पर इतना मान ले

तू मेरी इब्तिदा है मेरी आखिरी भी है।।

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