मेरे बहुत से कवि और लेखक मित्र अक्सर ऐसी पोस्ट डालते हैं कि उनकी फलां रचना अलाने ने चोरी कर ली।अथवा अलां रचना फलाने की वाल पर मिली।मुझे लगता है कि ऐसी पोस्ट्स से निश्चित ही उन रचनाकारों की टीआरपी बढ़ती होगी। मैं भी ऐसी पोस्ट्स पढ़कर रोमांचित होता था। पर धीरे धीरे सारा रोमांच जाता रहा। बल्कि अब  वे ऐसी पोस्ट्स कोफ्त देने लगी हैं। या यूं कहें कि अब यह सब पढ़कर मुझमें हीनभावना आने लगी है।

 पहले ऐसी हीनभावना मुझमें तब घर करने लगी थी जब लोग अपने डाइबिटीज का  ज़िक्र करते थे। और वही लोग लो कैलोरी फूड्स की खूबियां बताते बताते चार समोसे चट कर जाते थे।बड़े बुजुर्ग बताते थे कि ये अमीर लोगों की बीमारियां हैं।

 मैं अक्सर सुनता था कि फलाने व्यक्ति का हृदय गति रुकने से निधन हो गया। तब मेरे इर्द गिर्द भी कई निधन होते थे परंतु  हृदयगति रुकने के कारण निधन जैसी बात  सुनने में नहीं आती थी। लोग कहते थे ,"फलाने मरि गये।,  यानी वहाँ भी इन्फिरिआरिटी काम्प्लेक्स कि ह्दय गति रुकने से बड़े आदमी ही मरते हैं।

 फिलहाल रचना चोरी  होने की बात चल रही है। मुझे बड़ा दुख है कि मेरी कोई मेरी रचना क्यों नहीं चुराता? यदि मेरी रचनायें चोरी होती तो मेरी टीआरपी भी बढ़ जाती।साहित्यिक समाज के वरिष्ठ असामाजिकों में मेरा भी नाम शुमार हो जाता।

  एक कवि मित्र  अपनी रचना चोरी होने पर पुलिस में रपट लगाने गए। थाने में उनसे  पूछा गया कि क्या आप की रचनाये इस लायक हैं कि वे चोरी की जा सकें? और एक निर्देश दिया गया कि चोरी गयी आपकी ही है इसके लिए  स्टाम्प पेपर पर हलफनामा दाखिल करें।

 ख़ैर कवि जी हलफनामा देने के लिए तैयार होते तब तक थाने के मुंशी ने एक नया फरमान सुना दिया कि, "दरोगाइन अपने नाम से एक कविता संग्रह निकलवाना चाहती हैं ,अपनी पचास कविताएं थाने पहुंचा देना।' इतना सुनते ही रपट लिखवाने का  मित्र के सर से भूत ही उतर गया।

  

  लगभग ऐसा ही कॉम्प्लेक्स परसाई जी को तब हुआ था जब उनके पड़ोस में एक सेठ जी के घर आयकर विभाग ने छापा मारा था।बकौल परसाई जी अगर इनकमटैक्स वाले कुछ पैसा लेकर भी उनके घर छापा मार देते तो इससे उनकी प्रतिष्ठा में इज़ाफा हो जाता। आज यही दर्द मेरा भी है ।


सुरेश साहनी, कानपुर

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