दीदा-ए-तर में ग़ज़ल रखते हैं।
हम तो तेवर में ग़ज़ल रखते हैं।।
नींद से हम नहीं दबने वाले
साथ बिस्तर में ग़ज़ल रखते हैं।।
हम अंधेरों के मुक़ाबिल होकर
दैर-ओ-दर में ग़ज़ल रखते हैं।।
हम सियासी तो नहीं हैं लेकिन
वज़्मे-लीडर में ग़ज़ल रखते हैं।।
आपके सर में भरी है उलझन
और हम सर में ग़ज़ल रखते हैं।।
सुरेश साहनी अदीब, कानपुर
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