समझता हूँ सब कोई बच्चा नहीं हूँ। 

तुम्हें क्या लगा मैं समझता नहीं हूँ।।

सियासत भी गोया तुम्हीं जानते हो

तो सुन लो मैं माटी का बबुआ नहीं हूँ ।।

जहाँ पढ़ रहे हो वहाँ प्रिंसिपल था

अभी तक मैं फ़न अपने भूला नहीं हूं।।

तुम्हारे कपट छल तुम्हीं को मुबारक

तुम्हारी तरह मैं कमीना नहीं हूँ।।

कहीं दुम हिलाऊँ ये मुझसे न होगा

कलमगीर हूँ कोई कुत्ता नहीं हूँ।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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