कुछ दर्द बड़ी खामोशी से

सीने में जगह कर लेते हैं

कुछ मरहम हैं जो लगने पर

सुख चैन सभी हर लेते हैं।।


कुछ रिश्ते जो खामोशी से

खुद टूटे दिल भी तोड़ गए

जीवन भर साथ न छोड़ेंगे

मौका मिलते मुंह मोड़ गए


आखिर कैसे ये  ग़ैरत की

सौदेबाजी  कर लेते हैं।।


उनके दिल मे कितने दिल हैं

उनका दिल है या महफ़िल है

चेहरे पर जितना भोलापन

फितरत  क्यों उतनी क़ातिल है


ये हँस के जिबह भी करते है

फिर मातम भी कर लेते हैं।।


सुरेश साहनी , कानपुर

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