कहीं कोई अपनी डगर चल रहा है।

कहीं कोई उस राह पर चल रहा हैं।।

हुआ चाहता है कोई घर से बाहर

कोई कह रहा है कि घर चल रहा है।।

सफ़र आपका भी वहीं ख़त्म होगा

ये सारा ज़माना जिधर चल रहा है।।

ये उनका भरम है कि ठहरा है पैकर 

नफ़्स चल रही है बशर चल रहा है।।

ये दोज़ख ये जन्नत ये मज़हब की बातें

फ़क़त जाहिलों पे हुनर चल रहा है।।

अभी मयकदे में हुआ है सवेरा

अभी कारोबारे-शहर चल रहा है ।।

ज़मीं आसमां चाँद तारे ये सूरज

पसारा ये शामोसहर चल रहा है।।

न जाने ये कब तक भटकता रहेगा

के आदम सफ़र दर सफ़र चल रहा है।।SS

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है