इक तुम्हारा नियम नियम है क्या।

बेईमानों तनिक शरम है क्या।।

बेचते हो धरम दुकानों में

जानते भी हो कुछ धरम है क्या।। 

क्या पता कैसी भूख थी उसको

उसने पूछा कि कुछ गरम है क्या।।

हमने उसका मिजाज़ पूछ लिया

उसने हँस कर कहा कि ग़म है क्या।।

आईना देखते हो छुप छुप कर

आईना दूसरा सनम है क्या।।

क्या ये कहते हो रुठ जाएंगे

हम भी देखें कि ये सितम है क्या।।

ऊँची मौजों के हश्र मालुम हैं

ज़िन्दगी क्या है ज़ेरो-बम है क्या।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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