तुम्हारी बेवफाई क्या बताते।
किसे देते सफाई क्या बताते।।
तेरी शैतानियां भाने लगी थीं
हम अपनी पारसाई क्या बताते।।
रक़ीबों के मुहल्ले में तुम्हारी
हर इक से आशनाई क्या बताते।।
न तुम आये न नासेह बाज आया
कयामत भी न आई क्या बताते।।
गये भँवरे के सिर इल्ज़ाम सारे
गुलों की बेहयाई क्या बताते।।
किया खारो ने हँस कर चाक दामन
कली क्यों मुस्कुराई क्या बताते।।
कई ने जान दी है आशिक़ी में
फ़क़त अपनी बड़ाई क्या बताते।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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